Monday, 11 August 2025

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||


शब्दार्थ

ॐ – परमात्मा का मूल पवित्र ध्वनि

त्र्यम्बकं – तीन नेत्रों वाले (भगवान शिव)

यजामहे – हम पूजन करते हैं / ध्यान करते हैं

सुगन्धिं – जो शुभ गंध की तरह चारों ओर फैलते हैं (सत्कर्म, कृपा, शांति)

पुष्टिवर्धनम् – जो पोषण और शक्ति बढ़ाते हैं

उर्वारुकम् – खरबूजा या ककड़ी (जो पकने पर बेल से अलग हो जाती है)

इव – जैसे

बन्धनात् – बंधन से

मृत्युः – मृत्यु

मुक्षीय – मुक्त करें

मा – नहीं

अमृतात् – अमरत्व से / मोक्ष से



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भावार्थ / अनुवाद

> "ॐ, हम त्रिनेत्रधारी भगवान शिव का ध्यान करते हैं, जो सुगंध की तरह सबमें व्याप्त हैं और सबका पोषण करते हैं। हमें मृत्यु के बंधन से वैसे ही मुक्त करें जैसे पकने पर ककड़ी बेल से अलग हो जाती है, और हमें अमरत्व (मोक्ष) से वंचित न करें।"

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