श्लोक
वासुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् ।
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम ॥
अर्थ (अनुवाद)
मैं वासुदेव के पुत्र, देवताओं के देव, कंस और चाणूर के संहारक,
माता देवकी के परम आनंद स्वरूप, जगत के गुरु भगवान श्रीकृष्ण को प्रणाम करता हूँ।
श्लोक
श्रीरामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥
अर्थ (अनुवाद)
मैं श्रीराम, रामभद्र, रामचन्द्र, सृष्टिकर्ता,
रघुनाथ और सीता के पति को प्रणाम करता हूँ।
श्लोक
नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् ।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् ॥
अर्थ (अनुवाद)
जो नीलांजन (गहरे नीले रंग के अंजन) के समान आभा वाले हैं,
जो सूर्यपुत्र और यमराज के अग्रज हैं,
जो छाया और सूर्य से उत्पन्न हुए हैं —
ऐसे शनैश्चर (शनि देव) को मैं प्रणाम करता हूँ।