Tuesday, 12 August 2025

श्लोकवासुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् ।देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम ॥

श्लोक
वासुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् ।
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम ॥

अर्थ (अनुवाद)
मैं वासुदेव के पुत्र, देवताओं के देव, कंस और चाणूर के संहारक,
माता देवकी के परम आनंद स्वरूप, जगत के गुरु भगवान श्रीकृष्ण को प्रणाम करता हूँ।


श्लोक
श्रीरामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥

अर्थ (अनुवाद)
मैं श्रीराम, रामभद्र, रामचन्द्र, सृष्टिकर्ता,
रघुनाथ और सीता के पति को प्रणाम करता हूँ।



श्लोक
नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् ।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् ॥

अर्थ (अनुवाद)
जो नीलांजन (गहरे नीले रंग के अंजन) के समान आभा वाले हैं,
जो सूर्यपुत्र और यमराज के अग्रज हैं,
जो छाया और सूर्य से उत्पन्न हुए हैं —
ऐसे शनैश्चर (शनि देव) को मैं प्रणाम करता हूँ।

मंगलं भगवान विष्णुः मंगलं गरुड़ध्वजः । मंगलं पुण्डरीकाक्षः मंगलायतनो हरिः ॥

श्लोक

मंगलं भगवान विष्णुः  
मंगलं गरुड़ध्वजः ।  
मंगलं पुण्डरीकाक्षः  
मंगलायतनो हरिः ॥

अनुवाद

मंगलं भगवान विष्णुः – भगवान विष्णु सबको मंगल (कल्याण) प्रदान करने वाले हैं।

मंगलं गरुड़ध्वजः – गरुड़ध्वज (जिनके ध्वज पर गरुड़ का चिन्ह है) भगवान का मंगलमय स्वरूप है।

मंगलं पुण्डरीकाक्षः – कमलनयन (पुण्डरीकाक्ष) भगवान विष्णु शुभ और कल्याणकारी हैं।

मंगलायतनो हरिः – हरि (विष्णु) स्वयं मंगल के आश्रय और निवासस्थान हैं।


भावार्थ
यह श्लोक भगवान विष्णु के चार शुभ नामों का स्मरण कर उनके द्वारा जीवन में मंगल, शांति और कल्याण की कामना करता है।

विष्णु भगवान मंत्र —मंगलं भगवान विष्णुः मंगलं गरुडध्वजः।मंगलं पुण्डरीकाक्षः मंगलायतनो हरिः॥

मंगलं भगवान विष्णुः मंगलं गरुडध्वजः।
मंगलं पुण्डरीकाक्षः मंगलायतनो हरिः॥


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शब्दार्थ

मंगलं – कल्याणकारी, शुभ

भगवान विष्णुः – श्री विष्णु भगवान

गरुडध्वजः – जिनके ध्वज पर गरुड़ का चिन्ह है

पुण्डरीकाक्षः – कमल समान नेत्रों वाले

मंगलायतनः – शुभता के अधिष्ठान

हरिः – विष्णु का एक नाम (जो पाप और दुख हरते हैं)



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भावार्थ / अनुवाद

> "श्री विष्णु भगवान मंगलकारी हैं, गरुड़ध्वज मंगलकारी हैं, कमलनयन मंगलकारी हैं, और हरि, जो शुभता के निवास हैं, वे मंगलकारी हैं।"

🌅 सुबह और 🌆 शाम का मंगलाचरण



1. प्रारंभ – शुद्धि और नमस्कार

ॐ गं गणपतये नमः॥

भावार्थ – हे विघ्नहर्ता गणेश जी, मेरे कार्यों में सदैव सफलता दें।


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2. गणेश वंदना

वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

भावार्थ – करोड़ सूर्यों के समान तेजस्वी, विशाल शरीर वाले वक्रतुंड गणेशजी, मेरे सभी कार्य बिना विघ्न के पूरे हों।


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3. दीप वंदना

शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यं धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते॥

भावार्थ – हे दीपज्योति, आप शुभ करने वाले, आरोग्य और धन देने वाले, शत्रु बुद्धि नाश करने वाले हैं।


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4. विष्णु मंगलाचरण

मंगलं भगवान विष्णुः मंगलं गरुडध्वजः।
मंगलं पुण्डरीकाक्षः मंगलायतनो हरिः॥

भावार्थ – भगवान विष्णु, गरुड़ध्वज, कमलनयन और मंगल के अधिष्ठान हरि मंगलकारी हैं।


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5. शांति मंत्र

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

भावार्थ – सब सुखी हों, सब निरोग हों, सब मंगल देखें, कोई भी दुःखी न हो।


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6. गुरु-शिष्य मंगलाचरण

ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु।
सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

भावार्थ – ईश्वर गुरु और शिष्य की रक्षा करे, साथ-साथ शक्ति दे, विद्या तेजस्वी बने और वैमनस्य न हो।


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7. समापन प्रार्थना

ॐ असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

भावार्थ – हे प्रभु, मुझे असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर और मृत्यु से अमरत्व की ओर ले चलो।

Monday, 11 August 2025

वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

शब्दार्थ

वक्रतुंड – टेढ़े सूंड वाले (गणेशजी का विशेष लक्षण)

महाकाय – विशाल शरीर वाले

सूर्यकोटि समप्रभ – करोड़ सूर्यों के समान प्रकाशमान

निर्विघ्नं – बिना विघ्न के

कुरु – कर दीजिए / बनाइए

मे – मेरे

देव – हे देव

सर्वकार्येषु – सभी कार्यों में

सर्वदा – सदा

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भावार्थ / अनुवाद

> "हे वक्रसूंड और विशाल शरीर वाले, करोड़ सूर्यों के समान तेजस्वी प्रभु! कृपया मेरे सभी कार्यों को सदा बिना किसी विघ्न के सम्पन्न कीजिए।"

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||


शब्दार्थ

ॐ – परमात्मा का मूल पवित्र ध्वनि

त्र्यम्बकं – तीन नेत्रों वाले (भगवान शिव)

यजामहे – हम पूजन करते हैं / ध्यान करते हैं

सुगन्धिं – जो शुभ गंध की तरह चारों ओर फैलते हैं (सत्कर्म, कृपा, शांति)

पुष्टिवर्धनम् – जो पोषण और शक्ति बढ़ाते हैं

उर्वारुकम् – खरबूजा या ककड़ी (जो पकने पर बेल से अलग हो जाती है)

इव – जैसे

बन्धनात् – बंधन से

मृत्युः – मृत्यु

मुक्षीय – मुक्त करें

मा – नहीं

अमृतात् – अमरत्व से / मोक्ष से



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भावार्थ / अनुवाद

> "ॐ, हम त्रिनेत्रधारी भगवान शिव का ध्यान करते हैं, जो सुगंध की तरह सबमें व्याप्त हैं और सबका पोषण करते हैं। हमें मृत्यु के बंधन से वैसे ही मुक्त करें जैसे पकने पर ककड़ी बेल से अलग हो जाती है, और हमें अमरत्व (मोक्ष) से वंचित न करें।"