"ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रु विनाशाय सर्वरोग निवारणाय सर्ववश्यकरणाय रामदूताय स्वाहा।"
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शब्दार्थ एवं विस्तृत अनुवाद:
ॐ – परम ब्रह्म का बीजमंत्र; संपूर्ण सृष्टि का आधार।
नमो हनुमते – मैं हनुमानजी को नमस्कार करता हूँ। (हनुमान = बल, भक्ति, बुद्धि, और सेवा का प्रतीक)
रुद्रावताराय – जो भगवान शिव (रुद्र) के अवतार हैं;
(हनुमानजी को शिव का 11वां रुद्र अवतार माना जाता है।)
सर्वशत्रु विनाशाय – जो सभी प्रकार के शत्रुओं का विनाश करने में सक्षम हैं।
सर्वरोग निवारणाय – जो सभी प्रकार के रोगों, शारीरिक या मानसिक पीड़ा को हरने में समर्थ हैं।
सर्ववश्यकरणाय – जो संपूर्ण जगत को अपने प्रभाव में लाने की (वशीकरण की) शक्ति रखते हैं;
(यहाँ अर्थ है – वाणी, मन, और परिस्थितियों पर नियंत्रण प्राप्त करना, न कि किसी पर अनुचित नियंत्रण।)
रामदूताय – जो भगवान श्रीराम के आज्ञाकारी दूत हैं, सेवक हैं।
स्वाहा – यह शब्द मंत्र के अंत में आता है, विशेषतः यज्ञ या हवन में आहुति देने के समय;
इसका अर्थ होता है – "मैं यह ऊर्जा/प्रार्थना अर्पित करता हूँ।"
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विस्तृत भावार्थ:
हे भगवान हनुमान! आप रुद्र के अवतार हैं, आपको मेरा नमस्कार है।
आप सभी शत्रुओं का नाश करने वाले, सभी रोगों का निवारण करने वाले,
सभी को वश में करने की दिव्य शक्ति रखने वाले हैं।
आप श्रीराम के प्रिय दूत हैं, मैं आपको प्रणामपूर्वक यह मंत्र अर्पित करता हूँ।
"ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय..." मंत्र की जप विधि
1. समय और स्थान:
श्रेष्ठ समय: प्रातः ब्रह्ममुहूर्त (4 से 6 बजे) या सूर्यास्त के समय।
दिन: मंगलवार या शनिवार सर्वोत्तम हैं।
स्थान: शुद्ध, शांत और स्वच्छ स्थान (हनुमानजी की मूर्ति/चित्र के समक्ष)।
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2. आवश्यक सामग्री:
हनुमानजी की प्रतिमा या चित्र।
लाल वस्त्र, लाल फूल, चंदन, धूप-दीप, नारियल, और नैवेद्य (गुड़ या बूंदी)।
लाल आसन पर बैठना (कुश या ऊन का आसन उत्तम)।
रुद्राक्ष या तुलसी की माला (108 दानों वाली)।
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3. संकल्प (संकल्प मंत्र):
अपने उद्देश्य के अनुसार संकल्प लें, जैसे:
> "मैं अमुक नाम, अमुक समस्या के निवारण हेतु श्री हनुमानजी की कृपा पाने के लिए इस मंत्र का जप करता हूँ।"
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4. जप विधि:
आँखें बंद करें, मन स्थिर करें।
108 बार इस मंत्र का जाप करें:
"ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रु विनाशाय सर्वरोग निवारणाय सर्ववश्यकरणाय रामदूताय स्वाहा।"
जप के अंत में हनुमान चालीसा या बजरंग बाण का पाठ कर सकते हैं।
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5. अवधि और नियम:
कम से कम 11 दिन, या 21 दिन तक नियमपूर्वक करें।
एक ही स्थान, समय, माला और विधि से करें।
ब्रह्मचर्य, सात्विक आहार, और संयमित जीवन बहुत आवश्यक है।
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6. विशेष प्रयोग (यदि हवन करना हो):
हवन के लिए गाय के घी, गुड़, और तिल का प्रयोग करें।
मंत्र की प्रत्येक आवृत्ति पर “स्वाहा” कहते हुए आहुति दें।
108 आहुतियाँ दें।
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मंत्र के प्रभाव:
रोग निवारण
शत्रु बाधा से मुक्ति
आत्मबल और साहस में वृद्धि
मानसिक शांति
बुरी शक्तियों से रक्षा
वाणी और विचारों में प्रभाव
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