Wednesday, 11 June 2025

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1: स्वभावो नोपदेशेन शक्यते कर्तुमन्यथा!
सुतप्तमपि पानीयं पुनर्गच्छति शीतताम् !!

हिन्दी अर्थ : किसी व्यक्ति को आप चाहे कितनी ही सलाह दे दो किन्तु उसका मूल स्वभाव नहीं बदलता ठीक उसी तरह जैसे ठन्डे पानी को उबालने पर तो वह गर्म हो जाता है लेकिन बाद में वह पुनः ठंडा हो जाता है.


2: अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहु भाषते!
अविश्वस्ते विश्वसिति मूढचेता नराधमः !!

हिन्दी अर्थ : किसी जगह पर बिना बुलाये चले जाना, बिना पूछे बहुत अधिक बोलते रहना, जिस चीज या व्यक्ति पर विश्वास नहीं करना चाहिए उस पर विश्वास करना मुर्ख लोगो के लक्षण होते है.

3: यथा चित्तं तथा वाचो यथा वाचस्तथा क्रियाः!    
  चित्ते वाचि क्रियायांच साधुनामेक्रूपता !!

हिन्दी अर्थ : अच्छे लोग वही बात बोलते है जो उनके मन में होती है. अच्छे लोग जो बोलते है वही करते है. ऐसे पुरुषो के मन, वचन व कर्म में समानता होती है.

4: षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता!
निद्रा तद्रा भयं क्रोधः आलस्यं दीर्घसूत्रता !!

हिन्दी अर्थ : किसी व्यक्ति के बर्बाद होने के 6 लक्षण होते है – नींद, गुस्सा, भय, तन्द्रा, आलस्य और काम को टालने की आदत.

5: द्वौ अम्भसि निवेष्टव्यौ गले बद्ध्वा दृढां शिलाम्!
धनवन्तम् अदातारम् दरिद्रं च अतपस्विनम् !!

हिन्दी अर्थ : दो प्रकार के लोगो के गले में पत्थर बांधकर उन्हें समुद्र में फेंक देना चाहिए. पहले वे व्यक्ति जो अमीर होते है पर दान नहीं करते और दूसरे वे जो गरीब होते है लेकिन कठिन परिश्रम नहीं करते.

6: यस्तु सञ्चरते देशान् सेवते यस्तु पण्डितान्!
तस्य विस्तारिता बुद्धिस्तैलबिन्दुरिवाम्भसि !!

हिन्दी अर्थ : वह व्यक्ति जो अलग – अलग जगहों या देशो में घूमता है और विद्वानों की सेवा करता है उसकी बुद्धि उसी तरह से बढती है जैसे तेल का बूंद पानी में गिरने के बाद फ़ैल जाता है.

7: परो अपि हितवान् बन्धुः बन्धुः अपि अहितः परः!
अहितः देहजः व्याधिः हितम् आरण्यं औषधम् !!

हिन्दी अर्थ : अगर कोई अपरिचित व्यक्ति आपकी सहायता करे तो उसे अपने परिवार के सदस्य की तरह ही महत्व दे वही अगर आपका परिवार का व्यक्ति आपको नुकसान पहुंचाए तो उसे महत्व देना बंद कर दे. ठीक उसी तरह जैसे शरीर के किसी अंग में चोट लगने पर हमें तकलीफ पहुँचती है वही जंगल की औषधि हमारे लिए फायदेमंद होती है.

8: येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः!

ते मर्त्यलोके भुविभारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति !!
हिन्दी अर्थ : जिन लोगो के पास विद्या, तप, दान, शील, गुण और धर्म नहीं होता. ऐसे लोग इस धरती के लिए भार है और मनुष्य के रूप में जानवर बनकर घूमते है.

9: अधमाः धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमाः!
उत्तमाः मानमिच्छन्ति मानो हि महताम् धनम् !!

हिन्दी अर्थ : निम्न कोटि के लोगो को सिर्फ धन की इच्छा रहती है, ऐसे लोगो को सम्मान से मतलब नहीं होता. एक मध्यम कोटि का व्यक्ति धन और सम्मान दोनों की इच्छा करता है वही एक उच्च कोटि के व्यक्ति के सम्मान ही मायने रखता है. सम्मान धन से अधिक मूल्यवान है.

10: कार्यार्थी भजते लोकं यावत्कार्य न सिद्धति!
उत्तीर्णे च परे पारे नौकायां किं प्रयोजनम् !!

हिन्दी अर्थ : जिस तरह नदी पार करने के बाद लोग नाव को भूल जाते है ठीक उसी तरह से लोग अपने काम पूरा होने तक दूसरो की प्रसंशा करते है और काम पूरा हो जाने के बाद दूसरे व्यक्ति को भूल जाते है.

11: न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि!
व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम् !!

हिन्दी अर्थ : इसे न ही कोई चोर चुरा सकता है, न ही राजा छीन सकता है, न ही इसको संभालना मुश्किल है और न ही इसका भाइयो में बंटवारा होता है. यह खर्च करने से बढ़ने वाला धन हमारी विद्या है जो सभी धनो से श्रेष्ठ है.

12: शतेषु जायते शूरः सहस्रेषु च पण्डितः!
वक्ता दशसहस्रेषु दाता भवति वा न वा !!

हिन्दी अर्थ : सौ लोगो में एक शूरवीर होता है, हजार लोगो में एक विद्वान होता है, दस हजार लोगो में एक अच्छा वक्ता होता है वही लाखो में बस एक ही दानी होता है.

13: विद्वत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन!
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते !!

हिन्दी अर्थ : एक राजा और विद्वान में कभी कोई तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि एक राजा तो केवल अपने राज्य में सम्मान पाता है वही एक विद्वान हर जगह सम्मान पाता है.

14: आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः!
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति !!
हिन्दी अर्थ : मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु आलस्य है. मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र परिश्रम होता है क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं रहता.

15: यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत्!
एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति !!

हिन्दी अर्थ : जिस तरह बिना एक पहिये के रथ नहीं चल सकता ठीक उसी तरह से बिना पुरुषार्थ किये किसी का भाग्य सिद्ध नहीं हो सकता.

16: बलवानप्यशक्तोऽसौ धनवानपि निर्धनः!
श्रुतवानपि मूर्खो सौ यो धर्मविमुखो जनः !!

हिन्दी अर्थ : जो व्यक्ति अपने कर्तव्य से विमुख हो जाता है वह व्यक्ति बलवान होने पर भी असमर्थ, धनवान होने पर भी निर्धन व ज्ञानी होने पर भी मुर्ख होता है.

17: जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं!
मानोन्नतिं दिशति पापमपा करोति !!

हिन्दी अर्थ : अच्छे दोस्तों का साथ बुद्धि की जटिलता को हर लेता है, हमारी बोली सच बोलने लगती है, इससे मान और उन्नति बढती है और पाप मिट जाते है.

18: चन्दनं शीतलं लोके,चन्दनादपि चन्द्रमाः!
चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः !!

हिन्दी अर्थ : इस दुनिया में चन्दन को सबसे अधिक शीतल माना जाता है पर चन्द्रमा चन्दन से भी शीतल होती है लेकिन एक अच्छे दोस्त चन्द्रमा और चन्दन से शीतल होते है.

19: अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम्!
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् !!

हिन्दी अर्थ : यह मेरा है और यह तेरा है, ऐसी सोच छोटे विचारो वाले लोगो की होती है. इसके विपरीत उदार रहने वाले व्यक्ति के लिए यह पूरी धरती एक परिवार की तरह होता है.

20: पुस्तकस्था तु या विद्या, परहस्तगतं च धनम्!
कार्यकाले समुत्तपन्ने न सा विद्या न तद् धनम् !!

हिन्दी अर्थ : किताब में रखी विद्या व दूसरे के हाथो में गया हुआ धन कभी भी जरुरत के समय काम नहीं आते.

21: विद्या मित्रं प्रवासेषु, भार्या मित्रं गृहेषु च!
व्याधितस्यौषधं मित्रं, धर्मो मित्रं मृतस्य च !!

हिन्दी अर्थ : विद्या की यात्रा, पत्नी का घर, रोगी का औषधि व मृतक का धर्म सबसे बड़ा मित्र होता है.

22: सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्!
वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः !!

हिन्दी अर्थ : बिना सोचे – समझे आवेश में कोई काम नहीं करना चाहिए क्योंकि विवेक में न रहना सबसे बड़ा दुर्भाग्य है. वही जो व्यक्ति सोच – समझ कर कार्य करता है माँ लक्ष्मी उसी का चुनाव खुद करती है.

23: उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः!
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः !!

हिन्दी अर्थ : दुनिया में कोई भी काम सिर्फ सोचने से पूरा नहीं होता बल्कि कठिन परिश्रम से पूरा होता है. कभी भी सोते हुए शेर के मुँह में हिरण खुद नहीं आता.

24: विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्!
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् !!

हिन्दी अर्थ : विद्या हमें विनम्रता प्रदान करती है, विनम्रता से योग्यता आती है व योग्यता से हमें धन प्राप्त होता है और इस धन से हम धर्म के कार्य करते है और सुखी रहते है.

25: माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः!
न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा !!

हिन्दी अर्थ : जो माता – पिता अपने बच्चो को पढ़ाते नहीं है ऐसे माँ – बाप बच्चो के शत्रु के समान है. विद्वानों की सभा में अनपढ़ व्यक्ति कभी सम्मान नहीं पा सकता वह वहां हंसो के बीच एक बगुले की तरह होता है.

26: सुखार्थिनः कुतोविद्या नास्ति विद्यार्थिनः सुखम्!
सुखार्थी वा त्यजेद् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम् !!

हिन्दी अर्थ : सुख चाहने वाले को विद्या नहीं मिल सकती है वही विद्यार्थी को सुख नहीं मिल सकता. इसलिए सुख चाहने वालो को विद्या का और विद्या चाहने वालो को सुख का त्याग कर देना चाहिए

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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।।
अर्थ – व्यक्ति का सबसे बड़ा दुश्मन आलस्य होता है, व्यक्ति का परिश्रम ही उसका सच्चा मित्र होता है। क्योंकि जब भी मनुष्य परिश्रम करता है तो वह दुखी नहीं होता है और हमेशा खुश ही रहता है।
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।।
अर्थ – व्यक्ति के मेहनत करने से ही उसके काम पूरे होते हैं, सिर्फ इच्छा करने से उसके काम पूरे नहीं होते। जैसे सोये हुए शेर के मुंह में हिरण स्वयं नहीं आता, उसके लिए शेर को परिश्रम करना पड़ता है।
काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च।
अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं।।
अर्थ– हर विद्यार्थी में हमेशा कौवे की तरह कुछ नया सीखाने की चेष्टा, एक बगुले की तरह एक्राग्रता और केन्द्रित ध्यान एक आहत में खुलने वाली कुते के समान नींद, गृहत्यागी और यहाँ पर अल्पाहारी का मतबल अपनी आवश्यकता के अनुसार खाने वाला जैसे पांच लक्षण होते है।
ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमाख्याति पृच्छति।
भुङ्क्ते भोजयते चैव षड्विधं प्रीतिलक्षणम्।।
अर्थ – लेना, देना, खाना, खिलाना, रहस्य बताना और उन्हें सुनना ये सभी 6 प्रेम के लक्षण है।
श्वः कार्यमद्य कुर्वीत पूर्वान्हे चापरान्हिकम्।
न हि प्रतीक्षते मृत्युः कृतमस्य न वा कृतम्।।
अर्थ–जिस काम को कल करना है उसे आज और जो काम शाम के समय करना हो तो उसे सुबह के समय ही पूर्ण कर लेना चाहिए। क्योंकि मृत्यु कभी यह नहीं देखती कि इसका काम अभी भी बाकी है।
श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुंडलेन, दानेन पाणिर्न तु कंकणेन।
विभाति कायः करुणापराणां, परोपकारैर्न तु चन्दनेन।।
अर्थ – कानों में कुंडल पहन लेने से शोभा नहीं बढ़ती, अपितु ज्ञान की बातें सुनने से होती है। हाथों की सुन्दरता कंगन पहनने से नहीं होती बल्कि दान देने से होती है। सज्जनों का शरीर भी चन्दन से नहीं बल्कि परहित में किये गये कार्यों से शोभायमान होता है।
अश्वस्य भूषणं वेगो मत्तं स्याद् गजभूषणं।
चातुर्यम् भूषणं नार्या उद्योगो नरभूषणं।।
अर्थ- घोड़े की शोभा उसके वेग से होती है और हाथी की शोभा उसकी मदमस्त चाल से होती है।नारियों की शोभा उनकी विभिन्न कार्यों में दक्षता के कारण और पुरुषों की उनकी उद्योगशीलता के कारण होती है।
मूर्खस्य पञ्च चिह्नानि गर्वो दुर्वचनं तथा।
क्रोधश्च दृढवादश्च परवाक्येष्वनादरः।।
अर्थ- एक मुर्ख के पांच लक्षण होते है घमण्ड, दुष्ट वार्तालाप, क्रोध, जिद्दी तर्क और अन्य लोगों के लिए सम्मान में कमी।

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नमो देवी महाविद्ये नमामि चरणौ तव । सदा ज्ञानप्रकाशं में देहि सर्वार्थदे शिवे ॥ भावार्थ : हे देवि ! आपको नमस्कार है । हे महाविद्ये ! में आपके चरणों में बार-बार नमन करता हूँ । सर्वार्थदायिनी शिवे ! आप मुझे सदा ज्ञानरूपी प्रकाश प्रदान कीजिये । या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में चेतना कहलाती हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है । या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में बुद्धिरूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है । या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में शक्ति रूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है । या देवी सर्वभूतेषु लज्जारूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में लज्जा रूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है । या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में शान्ति रूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है । या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धारूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में श्रद्धा रूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है । या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में लक्ष्मी रूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है । या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में दया रूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है । या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में माता रूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है । सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ भावार्थ : हे नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगल मयी हो। कल्याण दायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को सिद्ध करने वाली, शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है। Om namo hanumante bhay bhanjnay bhagvate sukham kuru ओम नमो: हनुमंते भय भनजनाय भगवते सुखंम कुरु। वक्रतुंडमहाकाय सूर्यकोटी सम्प्रभा निर्विघ्न करुणा देव सर्व कार्य वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ:। निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभ कार्येषु सर्वदा ॥ भावार्थ : हे हाथी के जैसे विशालकाय जिसका तेज सूर्य की सहस्त्र किरणों के समान हैं । बिना विघ्न के मेरा कार्य पूर्ण हो और सदा ही मेरे लिए शुभ हो ऐसी कामना करते है । *********** या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना । या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा पूजिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥ भावार्थ : जो कुन्द के फूल, चन्द्रमा, बर्फ और हार के समान श्वेत हैं, जो शुभ्र वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ उत्तम वीणा से सुशोभित हैं, जो श्वेत कमलासन पर बैठती हैं, ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देव जिनकी सदा स्तुति करते हैं और जो सब प्रकार की जड़ता हर लेती हैं, वे भगवती सरस्वती मेरा पालन करें । *************** वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥ भावार्थ : कंस और चाणूर का वध करनेवाले, देवकी के आनन्दवर्द्धन, वसुदेवनन्दन जगद्गुरु श्रीक़ृष्ण चन्द्र की मैं वन्दना करता हूँ । ******""""*""******** Hanuman Chalisa Hindi Lyrics दोहा श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि । बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥ बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार चौपाई जय हनुमान ज्ञान गुन सागर जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥१॥ राम दूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥२॥ महाबीर बिक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥ कंचन बरन बिराज सुबेसा कानन कुंडल कुँचित केसा॥४॥ हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे काँधे मूँज जनेऊ साजे॥५॥ शंकर सुवन केसरी नंदन तेज प्रताप महा जगवंदन॥६॥ विद्यावान गुनी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर॥७॥ प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया राम लखन सीता मनबसिया॥८॥ सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा विकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥ भीम रूप धरि असुर सँहारे रामचंद्र के काज सवाँरे॥१०॥ लाय सजीवन लखन जियाए श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥११॥ रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई॥१२॥ सहस बदन तुम्हरो जस गावै अस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥१३॥ सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥ जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥१५॥ तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा राम मिलाय राज पद दीन्हा॥१६॥ तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना लंकेश्वर भये सब जग जाना॥१७॥ जुग सहस्त्र जोजन पर भानू लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥१८॥ प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही जलधि लाँघि गए अचरज नाही॥१९॥ दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥ राम दुआरे तुम रखवारे होत ना आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥ सब सुख लहैं तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहु को डरना॥२२॥ आपन तेज सम्हारो आपै तीनों लोक हाँक तै कापै॥२३॥ भूत पिशाच निकट नहि आवै महावीर जब नाम सुनावै॥२४॥ नासै रोग हरे सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥ संकट तै हनुमान छुडावै मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥२६॥ सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा॥२७॥ और मनोरथ जो कोई लावै सोई अमित जीवन फल पावै॥२८॥ चारों जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥ साधु संत के तुम रखवारे असुर निकंदन राम दुलारे॥३०॥ अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता अस बर दीन जानकी माता॥३१॥ राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥ तुम्हरे भजन राम को पावै जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥ अंतकाल रघुवरपुर जाई जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥३४॥ और देवता चित्त ना धरई हनुमत सेई सर्व सुख करई॥३५॥ संकट कटै मिटै सब पीरा जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥ जै जै जै हनुमान गुसाईँ कृपा करहु गुरु देव की नाई॥३७॥ जो सत बार पाठ कर कोई छूटहि बंदि महा सुख होई॥३८॥ जो यह पढ़े हनुमान चालीसा होय सिद्ध साखी गौरीसा॥३९॥ तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥४०॥ दोहा पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥

Monday, 12 May 2025

शुभं करोति कल्याणमारोग्यं धनसंपदा ।शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥

शुभम करोति कल्याणम: पूर्ण श्लोक, अनुवाद और महत्व
1. परिचय
"शुभम करोति कल्याणम" हिंदू धर्म में एक व्यापक रूप से उच्चारित और श्रद्धेय प्रार्थना है। यह अक्सर घरों और मंदिरों में दीपक जलाने से पहले या संध्याकालीन प्रार्थनाओं के दौरान गाया जाता है । यह श्लोक न केवल एक सुंदर काव्यात्मक अभिव्यक्ति है, बल्कि यह गहरे आध्यात्मिक अर्थ और आकांक्षाओं से भी भरा हुआ है। इस प्रार्थना का मुख्य उद्देश्य प्रकाश की ज्योति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना और उससे शुभता, कल्याण, स्वास्थ्य, धन और नकारात्मकता के विनाश का आशीर्वाद प्राप्त करना है। यह रिपोर्ट इसी महत्वपूर्ण श्लोक के पूर्ण स्वरूप, इसके प्रत्येक शब्द के अर्थ, संपूर्ण हिंदी अनुवाद और हिंदू परंपराओं में इसके गहरे महत्व और व्याख्या पर विस्तृत जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से लिखी गई है।
2. संस्कृत में पूर्ण श्लोक
अनेक स्रोतों के अध्ययन से, "शुभम करोति कल्याणम" का सबसे सटीक और पूर्ण पहला श्लोक देवनागरी लिपि में इस प्रकार है:
शुभं करोति कल्याणमारोग्यं धनसंपदा ।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥
कुछ स्रोतों में इस मुख्य श्लोक के बाद एक और श्लोक भी पाया जाता है, जो अक्सर इसके साथ ही उच्चारित किया जाता है :
दीपज्योतिः परब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः ।
दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जबकि पहला श्लोक लगभग सभी स्रोतों में एक समान पाया जाता है, दूसरा श्लोक एक विस्तार या संबंधित प्रार्थना के रूप में प्रकट होता है जिसे अक्सर पहले श्लोक के साथ पढ़ा जाता है। कुछ ऑनलाइन वीडियो के उपशीर्षकों में मामूली भिन्नताएं दिखाई देती हैं, जैसे "गुरुत्वम प्यून आरोग्यम्" और "दिपक चोथी नमो स्तुति" , लेकिन ये संभवतः उच्चारण या लिप्यंतरण त्रुटियां हैं। मराठी परंपरा में, पहले श्लोक के बाद मराठी अनुवाद भी दिया जाता है , जो विभिन्न क्षेत्रीय उपयोगों को दर्शाता है।
3. पदार्थ (शब्द-शः अर्थ)
नीचे दी गई तालिका में पहले श्लोक के प्रत्येक संस्कृत शब्द और उसके संगत हिंदी अर्थ को दर्शाया गया है, जो विभिन्न स्रोतों से प्राप्त परिभाषाओं पर आधारित है:
| संस्कृत शब्द | हिंदी अर्थ |
|---|---|
| शुभं | अच्छा, शुभ, मंगलकारी, कल्याण, भाग्यशाली, शानदार, आकर्षक, अमीर  |
| करोति | करता है, बनाता है, लाता है, करता है, निर्माण करता है  |
| कल्याणं | कल्याण, मंगल, आनंद, भलाई, शुभ, भाग्य, नोबल, जॉयफुल  |
| आरोग्यं | रोग से मुक्ति, स्वास्थ्य, तंदुरुस्ती, नीरोग, रोगरहित, स्वस्थ  |
| धनसंपदा | धन और संपत्ति, समृद्धि, प्रचुर धन  |
| शत्रु | दुश्मन, शत्रु, वैरी, विरोधी, अरि  |
| बुद्धि | बुद्धि, मन, समझ, विचार, प्रबोधन, मानसिक योग्यता, विवेक, अक्ल  |
| विनाशाय | विनाश के लिए, नष्ट करने के लिए, समाप्त करने के लिए, दूर करने के लिए  |
| दीपज्योतिः | दीपक की ज्योति, प्रकाश का दीपक  |
| नमोऽस्तुते | आपको नमस्कार, मैं आपको नमन करता हूँ  |
4. हिंदी अनुवाद
पहले श्लोक का समग्र हिंदी अनुवाद इस प्रकार है:
"मैं उस दीपक की ज्योति को नमस्कार करता हूँ जो शुभता, कल्याण, स्वास्थ्य और धन-संपदा प्रदान करती है तथा शत्रु बुद्धि (नकारात्मक विचारों) का विनाश करती है।"
विभिन्न स्रोतों से प्राप्त अनुवाद इस अर्थ की पुष्टि करते हैं । ये अनुवाद दीपक की ज्योति को शुभता, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य लाने वाला बताते हैं, साथ ही नकारात्मक शक्तियों और प्रवृत्तियों को नष्ट करने वाला भी मानते हैं।
दूसरे श्लोक का हिंदी अनुवाद इस प्रकार है:
"दीपज्योति परब्रह्म है, दीपज्योति जनार्दन है। दीपक मेरे पापों को दूर करे, दीपज्योति को मेरा नमस्कार है।"
यह अनुवाद दीपक की ज्योति को सर्वोच्च वास्तविकता (ब्रह्म) और भगवान विष्णु (जनार्दन) का प्रतिनिधित्व करने वाला बताता है । यह प्रार्थना करता है कि दीपक का प्रकाश उपासक के पापों को दूर करे और उस दिव्य ज्योति को सादर नमन करता है।
5. महत्व एवं व्याख्या
प्रकाश का प्रतीकवाद: हिंदू दर्शन में प्रकाश एक केंद्रीय भूमिका निभाता है, जो ज्ञान, पवित्रता और दिव्यता का प्रतीक है। दीपक की ज्योति (दीपज्योति) अंधकार को दूर करने का प्रतिनिधित्व करती है, जिसे अक्सर अज्ञान और नकारात्मकता से जोड़ा जाता है । इस श्लोक का पाठ और दीपक जलाना प्रतीकात्मक रूप से ज्ञानोदय की खोज और नकारात्मक प्रवृत्तियों पर विजय पाने के एक सचेत प्रयास के रूप में व्याख्या की जा सकती है। यह मंत्र शत्रुतापूर्ण भावनाओं को खत्म करने और इस प्रकार शुभता, धन और समृद्धि लाने के उद्देश्य से जपा जाता है ।
वांछित आशीर्वाद का अर्थ और महत्व: इस श्लोक में कई महत्वपूर्ण आशीर्वादों की कामना की गई है, जो एक पूर्ण जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं।
 * शुभं: यह शब्द शुभता, सौभाग्य और सकारात्मक शुरुआत का प्रतीक है। किसी भी कार्य या जीवन में शुभता का होना सफलता और सकारात्मक परिणामों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
 * कल्याणं: इसका अर्थ है कल्याण, कुशल-क्षेम और स्वयं और दूसरों के लिए समग्र अच्छा स्वास्थ्य और समृद्धि । यह केवल भौतिक सुख नहीं, बल्कि भावनात्मक और आध्यात्मिक कल्याण को भी समाहित करता है।
 * आरोग्यं: यह स्वस्थ रहने और बीमारियों से मुक्त रहने के महत्व पर जोर देता है । एक स्वस्थ शरीर को एक पूर्ण जीवन प्राप्त करने के लिए आवश्यक माना जाता है ।
 * धनसंपदा: यह धन और समृद्धि के महत्व को दर्शाता है, न केवल भौतिक रूप से, बल्कि स्वयं का समर्थन करने और समाज में योगदान करने के साधन के रूप में भी ।
इन आशीर्वादों का क्रम (शुभता, कल्याण, स्वास्थ्य, धन) एक अच्छे जीवन के समग्र दृष्टिकोण को दर्शाता है, जो सकारात्मक शुरुआत से शुरू होता है और भौतिक समृद्धि में परिणत होता है जो समग्र कल्याण का समर्थन करता है।
"शत्रु बुद्धि विनाशाय" का महत्व: "शत्रु बुद्धि" शब्द का अर्थ केवल बाहरी शत्रु नहीं है, बल्कि नकारात्मक विचार, आंतरिक संघर्ष और शत्रुतापूर्ण भावनाएं भी हैं जो किसी व्यक्ति की प्रगति और कल्याण में बाधा डाल सकती हैं । इस पहलू का समावेश आंतरिक शुद्धता और इस मान्यता पर हिंदू धर्म के जोर को उजागर करता है कि आंतरिक नकारात्मकता एक अच्छे जीवन के लिए एक महत्वपूर्ण बाधा है । नकारात्मकता पर विजय प्राप्त करना और आंतरिक शांति और आध्यात्मिक विकास के लिए सकारात्मक विचारों को विकसित करना महत्वपूर्ण है।
पठन का संदर्भ: इस श्लोक को पारंपरिक रूप से दीपक जलाते समय, विशेष रूप से शाम के समय जपा जाता है । यह अनुष्ठानिक कार्य श्लोक के अर्थ को पुष्ट करता है, जिसमें भौतिक प्रकाश ज्ञान और सकारात्मकता के आंतरिक प्रकाश का प्रतीक है । दैनिक अनुष्ठान के दौरान श्लोक का पाठ इसके संदेश को सुदृढ़ करता है और इसे दैनिक जीवन में एकीकृत करता है, जिससे यह कल्याण और सकारात्मकता के लिए एक निरंतर प्रार्थना बन जाती है। संध्या के समय पाठ का समय भी प्रतीकात्मक हो सकता है, जो दिन से रात में संक्रमण और अंधकार के माध्यम से मार्गदर्शन के लिए आंतरिक प्रकाश की आवश्यकता को दर्शाता है।
देवताओं और दार्शनिक अवधारणाओं से संबंध: दूसरे श्लोक का ब्रह्म (परम वास्तविकता) और विष्णु (संरक्षक) से संबंध दिव्य प्रकाश के प्रति श्रद्धा को उजागर करता है । यह श्लोक कल्याण की तलाश, नकारात्मकता पर विजय और रोजमर्रा की जिंदगी में दिव्य उपस्थिति को पहचानने के मूल हिंदू मूल्यों को समाहित करता है। दूसरे श्लोक में ब्रह्म और विष्णु का आह्वान श्लोक को केवल भौतिक कल्याण के लिए एक साधारण प्रार्थना से ऊपर उठाता है, इसे गहन हिंदू दार्शनिक और धार्मिक अवधारणाओं से जोड़ता है।
6. निष्कर्ष
"शुभम करोति कल्याणम" श्लोक हिंदू परंपरा में शुभता, कल्याण, स्वास्थ्य, धन और नकारात्मकता को दूर करने की प्रार्थना के रूप में गहरा महत्व रखता है। यह प्रकाश के शक्तिशाली प्रतीकवाद में निहित है और इसका नियमित पाठ व्यक्ति को सकारात्मक और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है। यह श्लोक न केवल एक सुंदर प्रार्थना है, बल्कि यह हिंदू धर्म के मूल मूल्यों और दर्शन का भी सार है, जो हमें आंतरिक शांति, समृद्धि और दिव्य उपस्थिति की निरंतर याद दिलाता है।

Thursday, 8 May 2025

शंभु शरणे पड़ी, मागुं घड़ी रे घड़ी कष्ट कापो..

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शंभु शरणे पड़ी, मागुं घड़ी रे घड़ी कष्ट कापो..
दया करी शिव दर्शन आपो...
तमो भक्तोना भय हरनारा, शुभ सौनुं सदा करनारा..
हुं तो मंदमती, तारी अकळ गति, कष्ट कापो...
दया करी शिव दर्शन आपो..
अंगे भस्म स्मशाननी चोळी, संगे राखो सदा भूत टोळी..
भाले चन्द्र धरयो, कंठे विष धरयो, अमृत आपो...
दया करी शिव दर्शन आपो..
नेति नेति ज्यां वेद वदे छे, मारुं चितडुं त्यां जावा चहे छे..
सारा जगमां छे तुं, वसुं तारामां हुं, शक्ति आपो...
दया करी शिव दर्शन आपो...
आपो दृष्टिमां तेज अनोखुं, सारी सृष्टिमां शिवरुप देखुं..
मारा दिलमा वसो, आवी हैये वसो, शांति थापो...
दया करी शिव दर्शन आपो...
हुं तो एकलपंथी प्रवासी, छतां आतम केम उदासी..
थाक्यो मथी रे मथी, कारण મળतुं નથી, समजण आपो...
दया करी शिव दर्शन आपो...
शंकर दासनुं भवदुःख कापो, नित्य सेवा नुं शुभ फळ आपो..
टाळो मंदमती, टाळो गर्व गति, भक्ति आपो...
दया करी शिव दर्शन आपो...
आपो भक्तिमां भाव अनेरो, शिवभक्तिमां धर्म घणेरो,
प्रभु तमे पूजा, देवी पार्वती पूजो, कष्ट कापो,
दया करी दर्शन शिव आपो...
अंगे शोभे छे रुद्र नी माळा, कंठे लटके छे भोरिंग काळा,
तमे उमियापति, अमने आपो मति कष्ट कापो...
दया करी दर्शन शिव आपो...
शंभु शरणे पड़ी, मागुं घड़ी रे घड़ी कष्ट कापो..
दया करी दर्शन शिव आपो...

Saturday, 3 May 2025

"ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय

मंत्र (संशोधित रूप):

"ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रु विनाशाय सर्वरोग निवारणाय सर्ववश्यकरणाय रामदूताय स्वाहा।"


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शब्दार्थ एवं विस्तृत अनुवाद:

ॐ – परम ब्रह्म का बीजमंत्र; संपूर्ण सृष्टि का आधार।

नमो हनुमते – मैं हनुमानजी को नमस्कार करता हूँ। (हनुमान = बल, भक्ति, बुद्धि, और सेवा का प्रतीक)

रुद्रावताराय – जो भगवान शिव (रुद्र) के अवतार हैं;
(हनुमानजी को शिव का 11वां रुद्र अवतार माना जाता है।)

सर्वशत्रु विनाशाय – जो सभी प्रकार के शत्रुओं का विनाश करने में सक्षम हैं।

सर्वरोग निवारणाय – जो सभी प्रकार के रोगों, शारीरिक या मानसिक पीड़ा को हरने में समर्थ हैं।

सर्ववश्यकरणाय – जो संपूर्ण जगत को अपने प्रभाव में लाने की (वशीकरण की) शक्ति रखते हैं;
(यहाँ अर्थ है – वाणी, मन, और परिस्थितियों पर नियंत्रण प्राप्त करना, न कि किसी पर अनुचित नियंत्रण।)

रामदूताय – जो भगवान श्रीराम के आज्ञाकारी दूत हैं, सेवक हैं।

स्वाहा – यह शब्द मंत्र के अंत में आता है, विशेषतः यज्ञ या हवन में आहुति देने के समय;
इसका अर्थ होता है – "मैं यह ऊर्जा/प्रार्थना अर्पित करता हूँ।"


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विस्तृत भावार्थ:

हे भगवान हनुमान! आप रुद्र के अवतार हैं, आपको मेरा नमस्कार है।
आप सभी शत्रुओं का नाश करने वाले, सभी रोगों का निवारण करने वाले,
सभी को वश में करने की दिव्य शक्ति रखने वाले हैं।
आप श्रीराम के प्रिय दूत हैं, मैं आपको प्रणामपूर्वक यह मंत्र अर्पित करता हूँ।


"ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय..." मंत्र की जप विधि

1. समय और स्थान:

श्रेष्ठ समय: प्रातः ब्रह्ममुहूर्त (4 से 6 बजे) या सूर्यास्त के समय।

दिन: मंगलवार या शनिवार सर्वोत्तम हैं।

स्थान: शुद्ध, शांत और स्वच्छ स्थान (हनुमानजी की मूर्ति/चित्र के समक्ष)।



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2. आवश्यक सामग्री:

हनुमानजी की प्रतिमा या चित्र।

लाल वस्त्र, लाल फूल, चंदन, धूप-दीप, नारियल, और नैवेद्य (गुड़ या बूंदी)।

लाल आसन पर बैठना (कुश या ऊन का आसन उत्तम)।

रुद्राक्ष या तुलसी की माला (108 दानों वाली)।



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3. संकल्प (संकल्प मंत्र):

अपने उद्देश्य के अनुसार संकल्प लें, जैसे:

> "मैं अमुक नाम, अमुक समस्या के निवारण हेतु श्री हनुमानजी की कृपा पाने के लिए इस मंत्र का जप करता हूँ।"




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4. जप विधि:

आँखें बंद करें, मन स्थिर करें।

108 बार इस मंत्र का जाप करें:

"ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रु विनाशाय सर्वरोग निवारणाय सर्ववश्यकरणाय रामदूताय स्वाहा।"

जप के अंत में हनुमान चालीसा या बजरंग बाण का पाठ कर सकते हैं।



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5. अवधि और नियम:

कम से कम 11 दिन, या 21 दिन तक नियमपूर्वक करें।

एक ही स्थान, समय, माला और विधि से करें।

ब्रह्मचर्य, सात्विक आहार, और संयमित जीवन बहुत आवश्यक है।



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6. विशेष प्रयोग (यदि हवन करना हो):

हवन के लिए गाय के घी, गुड़, और तिल का प्रयोग करें।

मंत्र की प्रत्येक आवृत्ति पर “स्वाहा” कहते हुए आहुति दें।

108 आहुतियाँ दें।



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मंत्र के प्रभाव:

रोग निवारण

शत्रु बाधा से मुक्ति

आत्मबल और साहस में वृद्धि

मानसिक शांति

बुरी शक्तियों से रक्षा

वाणी और विचारों में प्रभाव



"ॐ नमो हनुमते आवेशाय आवेशाय नमः"

"ॐ नमो हनुमते आवेशाय आवेशाय नमः"

यह एक विशिष्ट तांत्रिक एवं शक्तिपरक मंत्र है, जो हनुमान जी की दैवी शक्ति के 'आवेश' — यानी कि साधक के भीतर दैवी शक्ति के प्रवेश — हेतु प्रयोग में लाया जाता है।


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शब्दार्थ:

ॐ – परमात्मा की मूल ध्वनि, ब्रह्मांड का सार

नमो – नमस्कार या वंदन

हनुमते – हनुमान जी को (दिव्य बल और भक्ति के प्रतीक)

आवेशाय आवेशाय – बार-बार आवेश करने की विनती; ‘आवेश’ का अर्थ है किसी दैवी शक्ति या ऊर्जा का शरीर में प्रवेश

नमः – पुनः नमस्कार या समर्पण



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भावार्थ (अर्थ सहित):

"हे परम बलवान हनुमान जी! आपको बारंबार नमस्कार है। कृपया अपनी दिव्य शक्ति से मुझे आविष्ट करें, मुझमें अपना तेज और बल प्रवाहित करें। मैं आपकी शरण में हूँ।"


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मंत्र का उद्देश्य:

यह मंत्र विशेष रूप से उन साधकों द्वारा जपा जाता है जो हनुमान जी से:

शारीरिक व मानसिक बल

दुष्ट प्रभावों से रक्षा

आत्मिक शक्ति और साहस

कठिन कार्यों में विजय
प्राप्त करना चाहते हैं।


1. मंत्र का महत्व:

यह मंत्र एक आवेश मंत्र है, जिसका उद्देश्य है हनुमान जी की शक्ति, तेज और साहस का अपने अंदर प्रवेश कराना।
यह मंत्र सामान्य पूजा से थोड़ा ऊपर की साधना में आता है। इसे शक्तिशाली तांत्रिक उपासक, वीर साधक, या रक्षा हेतु उपयोग करते हैं।

यह मंत्र कब उपयोगी होता है:

जब आपको मानसिक या आत्मिक कमजोरी महसूस हो

जब कोई भय, शत्रु या तांत्रिक बाधा हो

जब आप में साहस, निर्णय शक्ति या तेज की कमी हो

जब आप किसी विशेष उद्देश्य से हनुमान जी की कृपा पाना चाहते हों



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2. जप की विधि (साधना विधि):

सामग्री:

लाल आसन

हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र (पंचमुखी या बलवान रूप)

लाल चंदन, सिंदूर, फूल (जैसे गुड़हल)

दीपक (घी का)

एक माला (रक्तचंदन की उत्तम मानी जाती है)

साफ-सुथरी लाल वस्त्र पहनें


स्थान और समय:

मंगलवार या शनिवार से प्रारंभ करें

ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) या रात में (10–12 बजे)

एकांत, शांत और पवित्र स्थान चुनें



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जप विधि:

1. स्नान कर साफ वस्त्र पहनें


2. हनुमान जी को प्रणाम कर आसन ग्रहण करें


3. दीपक जलाएं, प्रसाद रखें (गुड़ या बूंदी)


4. "ॐ नमो हनुमते आवेशाय आवेशाय नमः" मंत्र का जाप करें


5. प्रतिदिन 108 बार (1 माला) जप करें, 21 दिन तक


6. हर दिन अंत में हनुमान चालीसा या बजरंग बाण पढ़ें


7. 21वें दिन पूर्णाहुति करें (गाय के घी से हवन करें, यदि संभव हो)




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3. नियम:

ब्रह्मचर्य का पालन करें

सात्त्विक भोजन करें

किसी पर क्रोध या कटु वचन न कहें

पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखें

साधना काल में शराब, मांस, प्याज, लहसुन आदि वर्जित हैं



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4. लाभ (फल):

भय, बाधा, कष्ट से मुक्ति

आत्मबल, साहस और ऊर्जा की वृद्धि

शत्रुओं पर विजय

मानसिक स्पष्टता और निर्णय शक्ति

जीवन में स्थिरता और तेज

तांत्रिक/नकारात्मक प्रभाव से रक्षा



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5. सावधानी:

यदि आप पहली बार तांत्रिक साधना कर रहे हैं, तो किसी जानकार से मार्गदर्शन लेना उचित होगा

यह मंत्र सामान्य पाठ के लिए भी उपयोगी है, परंतु आवेश साधना करने पर शरीर में उर्जा और कंपन अनुभव हो सकता है










हनुमान मंत्र ✨

ॐ हन हनुमते नमो नमः  
श्री हनुमते नमो नमः 
जय जय हनुमते नमो नमः
राम दुताए नमो नमः ।।

।। ओम मारुति नंदन नमो नमः
 श्री कष्टभंजन नमो नमः 
असुरनिकंदन नमो नमः
 श्री रामदूतम नमो नमः।।

ॐ हं हनुमते नमः ।।

ॐ हं पवननन्दनाय स्वाहा' 

हनुमान जी का मंत्र है. इसका अर्थ है, 'मैं भगवान हनुमान को प्रणाम करता हूं, जो पवन के पुत्र हैं और भगवान राम के भक्त हैं'. मंगलवार को इस मंत्र का जाप करना बहुत शुभ माना जाता है.












स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।

मूल श्लोक (स्वस्तिवाचन):

स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्तिनस्ताक्षर्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।
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शब्दार्थ:

1. स्वस्ति नः — हमारे लिए मंगल हो

2. इन्द्रः वृद्धश्रवाः — इन्द्र (वृद्धश्रवाः = जिसकी कीर्ति महान है)

3. पूषा विश्ववेदाः — पूषा (पालक देवता), जो सब कुछ जानता है

4. तार्क्ष्यः अरिष्टनेमिः — तार्क्ष्य (गरुड़), जिसकी गति में कोई विघ्न नहीं

5. बृहस्पतिः — बृहस्पति (बुद्धि और वाणी के देवता)

6. दधातु — प्रदान करें, स्थापित करें
---

विस्तृत अनुवाद व व्याख्या:

1. स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
हमारे लिए मंगलकारी हों इन्द्रदेव, जिनकी कीर्ति सदा वृद्धिशील है।
— इन्द्र को देवताओं के राजा और युद्ध के देवता के रूप में जाना जाता है। उनकी प्रशंसा से आशय है कि वे हमें शक्ति, साहस और विजय प्रदान करें।


2. स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
हमारे लिए मंगलकारी हों पूषा देवता, जो सब कुछ जानते हैं।
— पूषा मार्गदर्शक और सुरक्षा देने वाले देवता हैं। यह पंक्ति उनके संरक्षण और ज्ञान की कामना करती है।


3. स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
हमारे लिए मंगलकारी हों तार्क्ष्य (गरुड़ रूप), जिनकी गति अजेय है।
— गरुड़ विष्णु के वाहन हैं, और यह पंक्ति कहती है कि हमारी यात्रा जीवन में बिना किसी विघ्न के हो।


4. स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।
बृहस्पति (गुरु) हमारे लिए मंगल और शुभ बुद्धि स्थापित करें।
— बृहस्पति ज्ञान, विवेक और वाणी के देवता हैं। उनकी कृपा से हम सत्य और धर्म का पालन कर सकें, यही प्रार्थना की जाती है।
---

सारांश में:

यह मंत्र चार प्रमुख देवताओं — इन्द्र, पूषा, गरुड़ (तार्क्ष्य), और बृहस्पति — से हमारी रक्षा, ज्ञान, ऊर्जा, और सफलता की कामना करता है। यह वैदिक काल से चली आ रही मंगल-कामना की एक परंपरा है जिसे धार्मिक अनुष्ठानों में, यात्रा से पूर्व, या किसी शुभ कार्य के प्रारंभ में बोला जाता है।

https://youtu.be/CeYJodwCQKc?si=A-F_x_z1pt0rmVyD


ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः

स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:
स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमि:
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।

ॐ पयः पृथिव्यां, पयऽऔषधीषु,
पयो दिव्यन्तरिक्षे पयोधा:।
पयस्वती: प्रदिश: सन्तुमह्यं।।

ॐ विष्णोरराटमसि, विष्णो: श्नप्त्रेंस्त्थो,
विष्णो: स्युरसी विष्णो: ध्रुवोसि
वैष्णवमसि विष्णवे त्वा।।

ॐ अग्निर्देवता वातो देवता सूर्यो देवता चन्द्रमा देवता,
वसवो देवता रुद्रो देवतादित्यो देवता मरुतो देवता।
विश्वेदेवा देवता बृहस्पतिरतेन्द्रो देवता वरुणो देवता।।

ॐ द्यौ: शांतिरन्तरिक्षधुंशांति:
पृथिवी शांतिराप: शांतिरौषधय: शांति: वनस्पतयः शांति: विश्वेदेवा: शांति।
ब्रह्मशांति सर्व घुं शांति शान्तिरेव शांति सामाशान्तिरेधि।

ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: सुशान्तिर्भवतु सर्वारिष्ट शान्तिर्भवतु ॥ 

श्रीरस्तु कल्याण मस्तु शुभं भूयात् ॥

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वर:
गुरुः साक्षात्परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।

https://youtu.be/O8sdqfPYckw?si=M1V_gHQ1lk7T7QdX





Wednesday, 30 April 2025

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं  
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।  
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्  
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥


यह श्लोक भगवान विष्णु की स्तुति में है, जिसे प्रायः शांति पाठ या ध्यान के समय बोला जाता है। पूरा श्लोक और उसका हिंदी अनुवाद इस प्रकार है:

संस्कृत श्लोक:

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं  
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।  
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्  
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥

हिंदी अनुवाद:

मैं उन भगवान विष्णु को नमस्कार करता हूँ —
जो शांति के स्वरूप हैं,
सर्प (शेषनाग) पर शयन करने वाले हैं,
जिनकी नाभि में कमल है (जिसमें ब्रह्मा उत्पन्न हुए),
जो समस्त देवताओं के ईश्वर हैं,
जो सम्पूर्ण विश्व के आधार हैं,
जो आकाश के समान व्यापक हैं,
मेघ (बादल) के समान जिनका वर्ण है,
जिनका रूप अत्यंत शुभ और सुंदर है,
जो लक्ष्मीपति हैं,
कमल के समान नेत्र वाले हैं,
जो योगियों के ध्यान में प्राप्त होते हैं,
जो संसार के भय का नाश करने वाले हैं,
और जो समस्त लोकों के एकमात्र स्वामी हैं।



शांताकारं भुजगशयनं: श्लोक, अनुवाद और महत्व

यह रिपोर्ट भगवान विष्णु को समर्पित एक महत्वपूर्ण और व्यापक रूप से सम्मानित श्लोक, "शांताकारं भुजगशयनं" का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करती है। यह श्लोक हिंदू धर्म में गहरा महत्व रखता है और भगवान विष्णु के शांत स्वरूप, ब्रह्मांडीय भूमिका और दिव्य गुणों की समझ प्रदान करता है। इसकी व्यापक उपस्थिति विभिन्न धार्मिक वेबसाइटों और यूट्यूब वीडियो पर देखी जा सकती है, जो इसकी स्थायी लोकप्रियता और विष्णु पूजा में केंद्रीय भूमिका को दर्शाती है। इस रिपोर्ट का उद्देश्य पूर्ण संस्कृत श्लोक को विस्तृत हिंदी अनुवाद और इसके अर्थ एवं महत्व की गहन व्याख्या के साथ प्रस्तुत करना है।

पवित्र संस्कृत पाठ: शांताकारं भुजगशयनं...

निम्नलिखित भगवान विष्णु को समर्पित पूर्ण संस्कृत श्लोक है:

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् ।

लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं

वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥ 

यह छंद अपनी ध्वन्यात्मक सुंदरता और आध्यात्मिक অনুরণনের लिए श्रद्धेय है, जो भक्तों के हृदय में गहरी श्रद्धा और शांति की भावना पैदा करता है।

अर्थ का अनावरण: विस्तृत हिंदी अनुवाद

संस्कृत श्लोक का निम्नलिखित विस्तृत पंक्ति-दर-पंक्ति हिंदी अनुवाद है, जो विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी को सटीकता और बारीकियों को सुनिश्चित करने के लिए उपयोग करता है:

 * शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं: जिनकी आकृति अत्यंत शांत है, वह जो धीर, क्षीर और गंभीर हैं; जो शेषनाग की शैया पर शयन किए हुए हैं (विराजमान हैं); जिनकी नाभि में कमल है; जो देवताओं के भी ईश्वर हैं ।

 * विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्: जो संपूर्ण जगत के आधार हैं, संपूर्ण विश्व जिनकी रचना है; जो आकाश के सदृश सर्वत्र व्याप्त हैं; नीलमेघ के समान जिनका वर्ण है; अतिशय सुंदर जिनके संपूर्ण अंग हैं, जो अत्यंत मनभावन एवं सुंदर हैं ।

 * लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्: ऐसे लक्ष्मी के कान्त (लक्ष्मीपति); कमलनेत्र (जिनके नयन कमल के समान सुंदर हैं); (जो) योगियों के ध्यान द्वारा प्राप्त करने योग्य हैं ।

 * वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥: भगवान श्रीविष्णु को मैं प्रणाम करता हूँ (ऐसे परमब्रह्म श्री विष्णु को मेरा नमन है); जो जन्म-मरण रूप भय का नाश करने वाले हैं, जो सभी भय को नाश करने वाले हैं; जो संपूर्ण लोकों के स्वामी हैं, सभी चराचर जगत के ईश्वर हैं ।

यह अनुवाद भगवान विष्णु के एक बहुआयामी चित्रण को प्रकट करता है, जो उनकी शांति, ब्रह्मांडीय भूमिका, दिव्य सौंदर्य और आध्यात्मिक साधनाओं के माध्यम से उनकी सुलभता पर जोर देता है।

दिव्य गुणों को समझना: मुख्य शब्दों का अर्थ और व्याख्या

श्लोक के मुख्य शब्दों और वाक्यांशों में निहित गहन अर्थ और प्रतीकवाद को समझना इसके महत्व को पूरी तरह से समझने के लिए आवश्यक है।

 * शान्ताकारं (Shantakaram): यह शब्द उस व्यक्ति को इंगित करता है जिसका स्वरूप अत्यंत शांत है, जो शांति और स्थिरता का प्रतीक है । यह इंगित करता है कि भगवान विष्णु ब्रह्मांड की स्थिर और अपरिवर्तनीय नींव हैं। भक्तों के लिए, यह गुण आंतरिक शांति और स्थिरता का स्रोत है, जो उन्हें सांसारिक अस्तित्व की उथल-पुथल से सांत्वना प्रदान करता है, जैसा कि द्वारा सुझाया गया है।

 * भुजगशयनं (Bhujagashayanam): यह भगवान विष्णु की शेषनाग नामक सर्प पर लेटी हुई छवि का वर्णन करता है । शेषनाग अनंत ब्रह्मांडीय ऊर्जा और समय की चक्रीय प्रकृति का प्रतीक है। उस पर विष्णु का विश्राम इन मौलिक शक्तियों पर उनकी महारत का प्रतिनिधित्व करता है, जो उनके ब्रह्मांडीय महत्व को उजागर करता है क्योंकि वे अस्तित्व के ताने-बाने पर विश्राम करते हैं, ब्रह्मांडीय संतुलन बनाए रखते हैं।

 * पद्मनाभं (Padmanabham): यह शब्द विष्णु की नाभि से निकलने वाले कमल को संदर्भित करता है, जिससे ब्रह्मा, निर्माता, का उदय हुआ । यह ब्रह्मांड की उत्पत्ति और स्वयं सृजन की प्रक्रिया का प्रतीक है, जो ब्रह्मांडीय नाटक में विष्णु की केंद्रीय भूमिका पर जोर देता है।

 * सुरेशं (Suresham): इसका अर्थ है देवताओं के स्वामी या सर्वोच्च, जो विष्णु की प्रधानता को उजागर करता है । यह मान्यता दिव्य क्षेत्र के भीतर एक पदानुक्रमित संरचना को पुष्ट करती है, जिसमें विष्णु सर्वोच्च स्थान रखते हैं।

 * विश्वाधारं (Vishvadharam): यह इंगित करता है कि वह जो पूरे ब्रह्मांड का समर्थन करता है या आधार है । यह गुण ब्रह्मांड को बनाए रखने और एक साथ रखने में विष्णु की भूमिका पर जोर देता है, यह सुनिश्चित करता है कि स्थिरता और निरंतरता बनी रहे।

 * गगनसदृशं (Gaganasadrisham): यह विष्णु की तुलना आकाश या अंतरिक्ष के विस्तार से करता है, जो उनकी सर्वव्यापकता और सर्वव्यापी प्रकृति को दर्शाता है । जिस प्रकार आकाश सब कुछ समाहित करता है, उसी प्रकार विष्णु की उपस्थिति असीम है और सभी अस्तित्व में व्याप्त है।

 * मेघवर्णं (Meghavarnam): यह विष्णु के रंग को काले बादल के समान बताता है, जो अक्सर जीवन लाने वाले वर्षा-युक्त बादलों से जुड़ा होता है । यह दिव्य की अथाह और रहस्यमय प्रकृति का भी प्रतीक हो सकता है, जो जीवन को पोषित करने और बनाए रखने में उनकी भूमिका का सुझाव देता है।

 * शुभाङ्गम् (Shubhangam): इसका अर्थ है सुंदर और शुभ अंगों या रूप का होना, जो विष्णु की दिव्य पूर्णता और सुंदरता पर जोर देता है । दिव्य रूप की सुंदरता अक्सर भक्ति और चिंतन का विषय होती है, जो विस्मय और श्रद्धा को प्रेरित करती है।

 * लक्ष्मीकान्तं (Lakshmikantam): यह विष्णु को धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी के पति या प्रिय के रूप में संदर्भित करता है । यह प्रचुरता और शुभता के साथ उनके जुड़ाव को दर्शाता है, जो संरक्षण और समृद्धि के दिव्य मिलन का प्रतिनिधित्व करता है।

 * कमलनयनं (Kamalanayanam): यह विष्णु की आँखों को कमल के समान बताता है, जो पवित्रता, सुंदरता और वैराग्य का प्रतीक है । कमल के समान आँखें एक दिव्य दृष्टिकोण का सुझाव देती हैं जो शुद्ध है और भौतिक जगत से अप्रभावित है, आध्यात्मिक शुद्धता और अतिक्रमण का प्रतीक है।

 * योगिभिर्ध्यानगम्यम् (Yogibhirdhyanagamyam): यह स्पष्ट करता है कि विष्णु योगियों द्वारा ध्यान और चिंतन के माध्यम से प्राप्य या जानने योग्य हैं, जो दिव्य को साकार करने के लिए आध्यात्मिक अनुशासन के मार्ग पर प्रकाश डालते हैं । जबकि विष्णु सर्वव्यापी हैं, उनकी सच्ची प्रकृति को साकार करने के लिए केंद्रित आध्यात्मिक प्रयास की आवश्यकता होती है।

 * वन्दे विष्णुं (Vande Vishnum): इसका अर्थ है "मैं विष्णु को प्रणाम करता हूँ" या "मैं विष्णु की पूजा करता हूँ," जो श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करता है । यह श्लोक में भक्ति और समर्पण का मूल कार्य है, जो विष्णु के सर्वोच्च अधिकार की विनम्रता और मान्यता को दर्शाता है।

 * भवभयहरं (Bhavabhayaharam): यह विष्णु को सांसारिक अस्तित्व (जन्म और मृत्यु) और अन्य सभी भयों के भय को दूर करने वाले के रूप में संदर्भित करता है । यह दुख से मुक्तिदाता और साहस एवं निडरता के दाता के रूप में विष्णु की भूमिका को उजागर करता है।

 * सर्वलोकैकनाथम् (Sarvalokaikanatham): इसका अर्थ है सभी लोकों का एकमात्र स्वामी, जो पूरे ब्रह्मांड पर विष्णु की परम संप्रभुता पर जोर देता है । "एकनाथम्" (एकमात्र स्वामी) शब्द वैष्णववाद के व्यापक हिंदू संदर्भ में एकेश्वरवादी पहलू पर और जोर देता है, जहाँ विष्णु को परम वास्तविकता माना जाता है।

मुख्य निष्कर्ष: प्रत्येक शब्द का विस्तृत विश्लेषण भगवान विष्णु से जुड़े गुणों की समृद्ध टेपेस्ट्री को प्रकट करता है, जो एक शांत, शक्तिशाली और परोपकारी देवता की तस्वीर पेश करता है जो ब्रह्मांड का आधार है और आध्यात्मिक साधनाओं के माध्यम से भक्तों के लिए सुलभ है। यह श्लोक वैष्णववाद के प्रमुख सिद्धांतों को समाहित करता है, जो सर्वोच्च संरक्षक और भक्ति की अंतिम वस्तु के रूप में विष्णु की भूमिका पर जोर देता है।

श्लोक का महत्व और संदर्भ

"शांताकारं भुजगशयनं" श्लोक का हिंदू दर्शन में व्यापक महत्व है और यह भक्ति प्रथाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह श्लोक एक शक्तिशाली ध्यान उपकरण के रूप में कार्य करता है, जो भक्तों को भगवान विष्णु के दिव्य रूप की कल्पना करने और उनसे जुड़ने की अनुमति देता है । श्लोक का वर्णनात्मक स्वभाव ध्यान के दौरान मन को केंद्रित करने में सहायता करता है, जिससे दिव्य के साथ गहरा संबंध बनता है।

इसका उपयोग शांति की तलाश, भय दूर करने और आध्यात्मिक मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त करने की प्रार्थना के रूप में भी किया जाता है । श्लोक की सामग्री सीधे शांति और दुख से मुक्ति की मानवीय इच्छा को संबोधित करती है, जिससे यह सांसारिक और आध्यात्मिक कल्याण दोनों के लिए एक शक्तिशाली प्रार्थना बन जाती है। "भवभयहरं" (सांसारिक अस्तित्व के भय को दूर करने वाला) का स्पष्ट उल्लेख मौलिक मानवीय चिंताओं को दूर करने में श्लोक की प्रभावकारिता को रेखांकित करता है।

यह श्लोक विष्णु मंदिरों और दैनिक प्रार्थनाओं से भी जुड़ा हुआ है, जो हिंदू धार्मिक जीवन में इसकी अभिन्न भूमिका पर जोर देता है । यह न केवल एक दार्शनिक कथन है बल्कि पवित्र स्थानों पर पढ़ी जाने वाली और दैनिक अनुष्ठानों में शामिल एक जीवित प्रार्थना है। मंदिर की सेटिंग्स और दैनिक प्रथाओं में इसकी उपस्थिति हिंदू भक्ति जीवन के ताने-बाने में इसके गहरे एकीकरण को दर्शाती है।

कुछ ऑनलाइन स्रोतों में पाई जाने वाली भिन्नताओं और संभावित गलत व्याख्याओं को संबोधित करना महत्वपूर्ण है। यह प्रामाणिक और विश्वसनीय स्रोतों पर भरोसा करने के महत्व पर जोर देता है जब शास्त्रों को समझने की बात आती है। जबकि मूल अर्थ सुसंगत रहता है, शब्दों या उच्चारण में भिन्नता कभी-कभी भ्रम या गलत व्याख्या का कारण बन सकती है, जो विद्वानों के संसाधनों के मूल्य को रेखांकित करती है।

मुख्य निष्कर्ष: "शांताकारं भुजगशयनं" केवल एक भजन से कहीं अधिक है; यह भक्ति की एक गहरी अभिव्यक्ति, ध्यान का एक उपकरण और आध्यात्मिक सांत्वना का स्रोत है। इसका व्यापक उपयोग और स्थायी प्रासंगिकता भक्तों को भगवान विष्णु से जोड़ने और आंतरिक शांति को बढ़ावा देने में इसकी शक्ति की गवाही देते हैं।

निष्कर्ष

संक्षेप में, "शांताकारं भुजगशयनं" श्लोक भगवान विष्णु के शांत स्वरूप, उनकी ब्रह्मांडीय भूमिका और भय को कम करने की उनकी शक्ति का एक गहन चित्रण प्रस्तुत करता है। श्लोक का शांति, भक्ति और आध्यात्मिक समझ की खोज का शाश्वत संदेश है। यह भक्तों को दिव्य के साथ गहरे संबंध की ओर मार्गदर्शन करने और आंतरिक शांति को बढ़ावा देने में अपनी निरंतर प्रासंगिकता बनाए रखता है।

महत्वपूर्ण मूल्यवान तालिका:

| संस्कृत शब्द | हिंदी अनुवाद | अंग्रेजी अनुवाद | स्निपेट संदर्भ |

|---|---|---|---|

| शान्ताकारं | जिनकी आकृति अतिशय शांत है, वह जो धीर क्षीर गंभीर हैं | One whose form is supremely peaceful, embodying tranquility and serenity | |

| भुजगशयनं | जो शेषनाग की शैया पर शयन किए हुए हैं (विराजमान हैं) | One who reclines on the serpent Sheshnaga | |

| पद्मनाभं | जिनकी नाभि में कमल है | One from whose navel a lotus emanates | |

| सुरेशं | जो ‍देवताओं के भी ईश्वर हैं | The lord or supreme among the gods | |

| विश्वाधारं | जो संपूर्ण जगत के आधार हैं, संपूर्ण विश्व जिनकी रचना है | The support or foundation of the entire universe | |

| गगनसदृशं | जो आकाश के सदृश सर्वत्र व्याप्त हैं | One who is like the sky, omnipresent and all-pervading | |

| मेघवर्णं | नीलमेघ के समान जिनका वर्ण है | One whose complexion is like that of a dark cloud | |

| शुभाङ्गम् | अतिशय सुंदर जिनके संपूर्ण अंग हैं, जो अति मनभावन एवं सुंदर है | One with beautiful and auspicious limbs or form | |

| लक्ष्मीकान्तं | ऐसे लक्ष्मी के कान्त ( लक्ष्मीपति ) | The consort or beloved of Lakshmi | |

| कमलनयनं | कमलनेत्र (जिनके नयन कमल के समान सुंदर हैं) | One with lotus-like eyes | |

| योगिभिर्ध्यानगम्यम् | (जो) योगियों के ध्यान द्वारा प्राप्त करने योग्य हैं | One who is attainable or knowable through meditation by yogis | |

| वन्दे विष्णुं | भगवान श्रीविष्णु को मैं प्रणाम करता हूँ (ऐसे परमब्रम्ह श्री विष्णु को मेरा नमन है) | I bow down to Vishnu or I worship Vishnu | |

| भवभयहरं | जो जन्म-मरण रूप भय का नाश करने वाले हैं, जो सभी भय को नाश करने वाले हैं | The one who removes the fear of worldly existence and all other fears | |

| सर्वलोकैकनाथम् | जो संपूर्ण लोकों के स्वामी हैं, सभी चराचर जगत के ईश्वर है

 | The sole lord of all the worlds | |


“शान्ताकारम भुजगशयनं पद्मनाभम” की दिव्य शांति की खोज

हिंदू धर्मग्रंथों के क्षेत्र में, श्लोक गहरे अर्थ रखते हैं, जो आध्यात्मिकता और दिव्यता के सार को समाहित करते हैं। शांतिपूर्ण आध्यात्मिकता को प्रतिध्वनित करने वाला एक ऐसा श्लोक है “शांतकारं भुजगशयनं पद्मनाभम्।”(shantakaram bhujagashayanam Padmanabham shloka)

पूर्ण श्लोक:-

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं 

विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं

 वन्दे विष्णुं भवभ्यहरं सर्वलोकैकनाथम्
(shantakaram bhujagashayanam Padmanabham shloka)हिंदी अनुवाद:-

इस श्लोक(shantakaram bhujagashayanam Padmanabham) का अनुवाद है:-

“मैं पद्मनाभ (भगवान विष्णु) की पूजा करता हूँ, जो शांति का स्वरूप है, सर्प पर शयन करने वाले, मनोहर और सुवर्णमयी दृष्टि वाले, सुंदर नासिका वाले, सुरों के इष्टदेव और सम्पूर्ण विश्व का सहारा हैं।”

“मैं शांति के अवतार, नाग पर लेटे हुए, नाभि से कमल उभरे हुए, देवताओं के स्वामी, ब्रह्मांड के आधार, आकाश के रंग वाले, शुभ लक्षणों से सुशोभित, भगवान विष्णु को प्रणाम करता हूं।
कमल जैसी आंखों वाली लक्ष्मी की पत्नी, योगियों द्वारा ध्यान किए जाने वाले, मैं सांसारिक भय को दूर करने वाले, सभी लोकों के स्वामी विष्णु की पूजा करता हूं।

यह श्लोक विष्णु भगवान की शांति और सुंदरता की महत्ता को बयान करता है और उसे भक्तिभाव से स्तुति करता है।

इसके आध्यात्मिक महत्व को जानने के लिए इस श्लोक के अनुवाद पर गौर करें। “शांताकारम” का तात्पर्य उस व्यक्ति से है जो शांति का प्रतीक है, “भुजगशयनम” एक सर्प पर लेटी हुई मुद्रा का प्रतीक है, और “पद्मनाभम” कमल-नाभि वाले भगवान को दर्शाता है।

दृश्य कल्पना:-

एक पल के लिए अपनी आंखें बंद करें और भगवान विष्णु की शांतिपूर्ण और मनोरम छवि की कल्पना करें, जो कुंडलित सर्प पर लेटे हुए हैं, और उनके मनमोहक चेहरे से शांति झलक रही है। यह दिव्य दृष्टि शांति की अनुभूति पैदा करती है और ब्रह्मांड की शांतिपूर्ण तरंगों के साथ संबंध स्थापित करती है।

प्रतीकवाद:-

इस श्लोक(shantakaram bhujagashayanam Padmanabham) का प्रतीकवाद बहुत गहरा है. सर्प अनंत ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है, और उस पर आराम करते हुए भगवान विष्णु ब्रह्मांड की व्यवस्था और संतुलन का प्रतीक हैं। भगवान विष्णु की नाभि से निकलने वाला कमल सृजन और पवित्रता का प्रतीक है, जो ब्रह्मांड की दिव्य उत्पत्ति को उजागर करता है।

आध्यात्मिक सद्भाव:-

जब हम इस श्लोक(shantakaram bhujagashayanam Padmanabham) को पढ़ते हैं या ध्यान करते हैं तो आध्यात्मिक सद्भाव की भावना पैदा होती है। यह हमें सभी जीवित प्राणियों और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली प्रणालियों के अंतर्संबंध की याद दिलाता है। आज की भागदौड़ और हलचल में, जहां अक्सर अराजकता बनी रहती है, इस श्लोक का पाठ हमें आंतरिक शांति और स्थिरता के महत्व की एक शक्तिशाली याद दिलाने के रूप में काम कर सकता है।

व्यावहारिक अनुप्रयोग:-

हम “शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभम्”(shantakaram bhujagashayanam Padmanabham shloka) के सार को अपने दैनिक जीवन में कैसे शामिल कर सकते हैं?

शायद सचेतन अभ्यासों के माध्यम से, ध्यान के माध्यम से, या बस प्रकृति की सुंदरता की सराहना करने के लिए कुछ क्षण निकालने के माध्यम से।

यह श्लोक हमें जीवन की हलचल के बीच शांति के क्षण खोजने, संतुलन और कल्याण की भावना को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करता है।

निष्कर्ष:-

जैसे-जैसे हम “शांतकारम भुजगशयनं पद्मनाभम”(shantakaram bhujagashayanam Padmanabham shloka) इस श्लोक के प्रतीकवाद की परतों का पता लगाते हैं वैसे-वैसे ही इसके लयबद्ध छंदों में, हमें दिव्य शांति का एक कालातीत संदेश मिलता है।

आइए हम अपने जीवन को उस शांत ऊर्जा से भरने का अवसर स्वीकार करें जिसका यह प्रतीक है। इस श्लोक का सार हमें आंतरिक शांति और आध्यात्मिक जागृति की ओर यात्रा पर मार्गदर्शन करे।



FAQs(पूछे जाने वाले प्रश्न):-

1. श्लोक “शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभम्”(shantakaram bhujagashayanam Padmanabham shloka) का क्या अर्थ है?

• “शांताकारम” का तात्पर्य उस व्यक्ति से है जो शांति का प्रतीक है, “भुजगशयनम” एक सर्प पर लेटी हुई मुद्रा का प्रतीक है, और “पद्मनाभम” कमल-नाभि वाले भगवान को दर्शाता है।


2. भगवान विष्णु कौन हैं, और हिंदू पौराणिक कथाओं में उन्हें अक्सर सांप पर लेटी हुई मुद्रा में क्यों चित्रित किया गया है?

• यह भगवान विष्णु के प्रतीकवाद को दर्शाता है और यह उनके प्रतीकवाद की पृष्ठभूमि है और साथ ही यह मुद्रा उनके प्रतिष्ठित प्रतिनिधित्व के महत्व पर प्रकाश डालती है।

3. श्लोक में वर्णित सर्प और कमल का आध्यात्मिक महत्व क्या है?

• सर्प और कमल के गहरे अर्थों की खोज से श्लोक के आध्यात्मिक संदर्भ को समझने में मदद मिल सकती है।

4. श्लोक में वर्णित कल्पना शांति और सुकून की अनुभूति में कैसे योगदान करती है?

• यह प्रश्न दृश्य कल्पना की शक्ति और आध्यात्मिक कल्याण पर इसके प्रभाव की खोज के लिए आमंत्रित करता है।

5. क्या इस श्लोक(shantakaram bhujagashayanam Padmanabham shloka) के जप या ध्यान से जुड़े कोई विशिष्ट अनुष्ठान या अभ्यास हैं?

• यहां, हम श्लोक को अपनी आध्यात्मिक दिनचर्या में शामिल करने से संबंधित किसी भी पारंपरिक प्रथाओं या आधुनिक व्याख्याओं पर चर्चा कर सकते हैं।

6. ब्रह्मांडीय व्यवस्था क्या है और यह श्लोक इसके महत्व को कैसे दर्शाता है?

• ब्रह्मांडीय व्यवस्था की अवधारणा को समझने से श्लोक में प्रतीकवाद की सराहना करने में मदद मिलती है।

7. क्या श्लोक “शान्ताकारम भुजगशयनं पद्मनाभम” का जाप किसी भी धार्मिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है?

• श्लोक “शान्ताकारम भुजगशयनं पद्मनाभम” का जाप किसी विशिष्ट धार्मिक पृष्ठभूमि तक सीमित नहीं है। विभिन्न आध्यात्मिक मार्गों और मान्यताओं के व्यक्ति इस श्लोक का पाठ कर सकते हैं।

8. इस श्लोक के सार को व्यावहारिक लाभ के लिए दैनिक जीवन में किस प्रकार लागू किया जा सकता है?

• श्लोक के व्यावहारिक अनुप्रयोगों की खोज पाठकों को इसकी शिक्षाओं को अपने रोजमर्रा के जीवन में एकीकृत करने के लिए प्रोत्साहित करती है

9. क्या इस श्लोक की उत्पत्ति से कोई ऐतिहासिक या सांस्कृतिक सन्दर्भ जुड़ा है?

• हां, इस श्लोक की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जड़ों की जांच करने से इसकी समझ में गहराई आती है।

10. जागृति के व्यापक संदर्भ में आंतरिक शांति क्या भूमिका निभाती है?

• यह श्लोक व्यक्तियों को खुद को ब्रह्मांडीय व्यवस्था के साथ संरेखित करने, भीतर की शांति को अपनाने और व्यापक ब्रह्मांड के साथ अपने अंतर्संबंध को पहचानने के लिए प्रोत्साहित करता है।


https://youtu.be/4dBCCu6r404?si=JaqSuK-YFetm95mp


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