Friday, 10 April 2020

Hanuman Chalisa

Hanuman Chalisa Hindi Lyrics

दोहा

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार
बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार

चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥१॥

राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥२॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुंडल कुँचित केसा॥४॥

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे
काँधे मूँज जनेऊ साजे॥५॥

शंकर सुवन केसरी नंदन
तेज प्रताप महा जगवंदन॥६॥

विद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर॥७॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मनबसिया॥८॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा
विकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे
रामचंद्र के काज सवाँरे॥१०॥

लाय सजीवन लखन जियाए
श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥११॥

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई॥१२॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावै
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥१३॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥१५॥

तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥१६॥

तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना
लंकेश्वर भये सब जग जाना॥१७॥

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू
लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥१८॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही
जलधि लाँघि गए अचरज नाही॥१९॥

दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥

राम दुआरे तुम रखवारे
होत ना आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥

सब सुख लहैं तुम्हारी सरना
तुम रक्षक काहु को डरना॥२२॥

आपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हाँक तै कापै॥२३॥

भूत पिशाच निकट नहि आवै
महावीर जब नाम सुनावै॥२४॥

नासै रोग हरे सब पीरा
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥

संकट तै हनुमान छुडावै
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥२६॥

सब पर राम तपस्वी राजा
तिनके काज सकल तुम साजा॥२७॥

और मनोरथ जो कोई लावै
सोई अमित जीवन फल पावै॥२८॥

चारों जुग परताप तुम्हारा
है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥

साधु संत के तुम रखवारे
असुर निकंदन राम दुलारे॥३०॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता
अस बर दीन जानकी माता॥३१॥

राम रसायन तुम्हरे पासा
सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥

तुम्हरे भजन राम को पावै
जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥

अंतकाल रघुवरपुर जाई
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥३४॥

और देवता चित्त ना धरई
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥३५॥

संकट कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥

जै जै जै हनुमान गुसाईँ
कृपा करहु गुरु देव की नाई॥३७॥

जो सत बार पाठ कर कोई
छूटहि बंदि महा सुख होई॥३८॥

जो यह पढ़े हनुमान चालीसा
होय सिद्ध साखी गौरीसा॥३९॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा
कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥४०॥

दोहा

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥

Saturday, 28 March 2020

वीर मराठा योद्धा बाजीराव

अटक से कटक तक जिसने हिंदवी राज का भगवा फहराया था,
वह वीर मराठा योद्धा ही बाजीराव कहलाया था।

उन्होंने १२ नवंबर, १७३६ को पुणे से दिल्ली मार्च शुरू कि। मुगल बादशाह ने आगरा के गवर्नर सादात खां को उनसे निपटने का जिम्मा सौंपा। मल्हारराव होलकर और पिलाजी जाधव की सेनाएं यमुना पार कर के दोआब में आ गईं। मराठों से खौफ में था सादात खां, उसने डेढ़ लाख की सेना जुटा ली। मराठों के पास तो कभी भी एक मोर्चे पर इतनी सेना नहीं रही थी। लेकिन उनकी रणनीति के चलते मल्हारराव होलकर ने रणनीति अनुसार मैदान छोड़ दिया। सादात खां ने इसे मराठों का डरना समझा और उसने डींगें मारते हुए अपनी जीत का सारा विवरण मुगल बादशाह को पहुंचा दिया और खुद सेना लेकर मथुरा की तरफ चला गया।

बस उसी वक्त बाजीराव ने सादात खां और मुगल दरबार को सबक सिखाने की सोची। मुगलों का और खासकर दिल्ली दरबार का खौफ सबके सिर चढ़कर बोलता था। लेकिन बाजीराव को पता था कि ये खौफ तभी हटेगा जब दिल्ली पर हमला होगा। सारी मुगल सेना आगरा-मथुरा में अटक गई और बाजीराव दिल्ली तक चढ़ आया, आज जहां तालकटोरा स्टेडियम है, वहां बाजीराव ने डेरा डाल दिया।

१० दिन की दूरी बाजीराव ने केवल ५०० घोड़ों के साथ ४८ घंटे में पूरी की; बिना रुके, बिना थके। बाजीराव ने तालकटोरा में अपनी सेना का कैंप डाल दिया, ५०० घोड़े थे उसके पास। मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला बाजीराव को लाल किले के इतना करीब देखकर घबरा गया। उसने खुद को लाल किले के अंदर सुरक्षित इलाके में कैद कर लिया और मीर हसन कोका की अगुआई में 8 से 10 हजार सैनिकों की टोली बाजीराव से निपटने के लिए भेजी। बाजीराव के ५०० लड़ाकों ने उस सेना को बुरी तरह शिकस्त दी।

कितना आसान था बाजीराव के लिए लाल किले में घुसकर दिल्ली पर कब्जा कर लेना। एक बार तो मुगल बादशाह ने योजना बना ली थी कि लाल किले के गुप्त रास्ते से भागकर अवध चला जाए लेकिन बाजीराव बस मुगलों को अपनी ताकत का अहसास दिलाना चाहता था। वो ३ दिन तक वहीं डेरा डाले रहा, पूरी दिल्ली एक तरह से मराठों के रहमोकरम पर थी। उसके बाद बाजीराव वापस लौट गए।

 निजाम दिल्ली आया और उसने कई मुगल सिपहसालारों ने हाथ मिलाते हुए बाजीराव को धूल चटाने का संकल्प लेकर कूच कर दिया। लेकिन बाजीराव बल्लाल भट्ट दूरदर्शी योद्धा थे। वह पहले से ही यह सब जानता थे। वह अपने भाई के साथ १०,००० सैनिकों को दक्कन की सुरक्षा का भार देकर ८०,००० सैनिकों के साथ फिर दिल्ली की तरफ निकल पड़े। इस बार मुगलों को निर्णायक युद्ध में हराने का इरादा था ताकि वे फिर सिर न उठा सकें।

दिल्ली से निजाम की नेतृत्व में मुगलों की विशाल सेना और दक्कन से बाजीराव की नेतृत्व में मराठा सेना निकल पड़ी। दोनों सेनाएं भोपाल में मिलीं। निजाम ने अपनी जान बचाने के के लिए बाजीराव से संधि कर ली। इस बार ०७ जनवरी, १७३८ को ये संधि दोराहा में हुई। मालवा, मराठों को सौंप दिया गया और मुगलों ने ५० लाख रुपए बतौर हर्जाना बाजीराव को सौंपे।

चूंकि निजाम हर बार संधि तोड़ता था तो बाजीराव ने इस बार निजाम को मजबूर किया कि वो कुरान की कसम खाकर संधि की शर्तें दोहराए। ये मुगलों की अब तक की सबसे बड़ी हार थी और मराठों की सबसे बड़ी जीत।

लेखिका : शिवानी शाह

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